• प्रमोद रंजन द्वारा संपादित “बहुजन साहित्य की सैद्धांतिकी” बहुजन साहित्य की अवधारणा का सैद्धांतिकरण करती है। यह पुस्तक बहुजन साहित्य के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझने और उनके सैद्धांतिक आधार को प्रस्तुत करने का प्रयास करती है।

    बहुजन साहित्य की अवधारणा कई स्तरों पर विचरोत्तेजक है। सही मायने में यह प्रगतिशील, जनवादी और दलित साहित्य का विस्तार है और उनका स्वाभाविक अगला मुकाम भी। तीन खंडों में विभाजित यह किताब बहुजन साहित्य के इतिहास और दर्शन से परिचय करवाती है तथा इस पर आधारित व्यावहारिक आलोचना की एक बानगी भी प्रस्तुत करती है।

    पहले खंड में प्रमोद रंजन का लेख “साहित्य में बहुजन अवधारणा: वर्तमान और भविष्य”, खगेंद्र ठाकुर का “बहुजन साहित्य ही साहित्य की मुख्यधारा है”, प्रेमकुमार मणि का “जो सबका होता है, वह किसी का नहीं होता”, शीलबोधी का “दलित विमर्श से बहुजन दर्शन की ओर”, ओमप्रकाश वाल्मीकि का “बहुजन साहित्य की परिकल्पना के साकार करें”, जय कौशल का “बहुजन साहित्य और पूर्वोत्तर भारत”, और पंकज चौधरी का “पचपनिया विमर्श: मैथिली में बहुजन साहित्य की संभावनाएं” शामिल हैं।

    दूसरे खंड में कंवल भारती का लेख “भारत में नवजागरण और बहुजन नायक”, प्रेमकुमार मणि का “बहुजन साहित्य का विकास एक ऐतिहासिक परिघटना”, कंवल भारती का “भदंत बोधानन्द और उनकी नवरत्न कमिटी”, कंवल भारती का “बहुजन साहित्य के प्रथम प्रस्तावक चन्द्रिका प्रसाद जिज्ञासु”, प्रमोद रंजन का “साहित्य में त्रिवेणी संघ और त्रिवेणी संघ का साहित्य”, और ओमप्रकाश कश्यप का “बहुजन चेतना का निर्माण और अर्जक संघ” शामिल हैं।

    तीसरे खंड में वीरेंद्र यादव का लेख “बहुजन कथा साहित्य”, प्रमोद रंजन का “हिंदी कविता में बहुजन-चरित्र”, और गुलाम रब्बानी का “उर्दू अफसानों में बहुजन-पसमांदा किरदार” शामिल हैं। यह पुस्तक बहुजन साहित्य की गहन समझ और इसके विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत दृष्टिकोण प्रदान करती है।

    यहां किताब का कवर पेज और विषय सूची दी गई है।