A group devoted do discuss and analyse works of Literary Journalism from all around the globe. Our notion of Literary Journalism is that of works that are simultaneously literatury and journalistic in their essence, i.e. nonfiction prose works with a narrative aesthetic.
-
Pramod Ranjan deposited एक अदद फुन्नन मियां और गोदान की गरिमा [A unique Funnan Miyan and the dignity of Godan] in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 4 months ago
प्रमोद रंजन की यह संपादकीय टिप्पणी शिमला से प्रकाशित सांध्य दैनिक भारतेंदु शिखर में अप्रैल, 2003 में प्रकाशित हुई है। उस समय रंजन इस पत्र के संपादक थे।
इस संपादकीय टिप्पणी में शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थिएटर में तीन नाटकों – ‘जाति ही पूछो साधु की’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ और गोदान के मंचन का जिक्र है। इसमें रंजन ने मध्यवर्गीय दर्शकों के फू…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited यशपाल के हिमाचली होने का अर्थ [The meaning of Yashpal being a Himachali] in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 4 months ago
यह लेख वर्ष 2003 में, हिंदी लेखक यशपाल की जन्मशती के उपलक्ष्य में लिखा गया था। लेखक, प्रमोद रंजन, हिमाचल प्रदेश में लम्बे समय तक रहे हैं। इस लेख में उन्होंने यशपाल के हिमाचल प्रदेश से संबंध को रेखांकित किया है। साथ ही, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के साहित्यकारों से आह्वान किया है कि वे यशपाल की वैश्विक दृष्टि से प्रेरणा ग्रहण करें और उससे जुड़ें।…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited एक दशक की टॉप-सेलर पुस्तकें और बहुजन साहित्य in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 5 months ago
यह लेख हिंदी प्रकाशन उद्योग में दलित-बहुजन साहित्य के बढ़ते प्रभाव की जांच करता है। राजकमल प्रकाशन समूह की बेस्टसेलर सूची को एक उदाहरण के रूप में उपयोग करते हुए, यह जाति, सामाजिक न्याय और हाशिए के समुदायों से जुड़ी रचनाओं के लिए बढ़ती पाठक संख्या पर चर्चा करता है। लेख इस बात पर भी चर्चा करता है कि कैसे सरकारी खरीद और बाजार की ताकतें…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited बहुजन साहित्य: हिंसा के घने अंधेरे में जल रहा आशा का दीप! [Bahujan Sahitya: A Beacon of Hope Burning in the Dense Darkness of Violence!] in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 6 months ago
बहुजन साहित्य केवल हिंदी तक सीमित नहीं है। 2023 में मणिपुर में हिंसा के दौरान भी बहुजन साहित्य पर केंद्रित कार्यक्रम आयोजित किया गया। यह जाति से परे, बुद्ध के सम्यक दर्शन से जुड़ता है।
डॉ. लैशराम बॉबी देवी ने कहा, “बहुजन साहित्य समाज के सभी वर्गों को एकजुट करने और उन्हें सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
2017 में जयपुर में ‘ब…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited निराला को आज पढ़ते हुए in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 6 months ago
प्रमोद रंजन के इस लेख में निराला और नीत्शे के बीच कई आधार पर समानताओं को चिन्हित किया गया है। लेख में कहा गया है कि निराला के काव्य से नीत्शे और मनु झांकते हैं। निराला सुपर मैने की अवधारणा में विश्वास रखने वाले कवि थे।
-
Pramod Ranjan deposited विपाशा का कविता अंक: हिमाचल के साहित्यिक इतिहास की झलक in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 1 year, 11 months ago
हिमाचल प्रदेश के भाषा एवं संस्कृति विभाग की पत्रिका विपाशा का अप्रैल – अगस्त 2022 अंक हिमाचल की हिंदी कविता पर केंद्रित था। यह उस अंक की प्रमोद रंजन द्वारा लिखित समीक्षा है।
-
Pramod Ranjan deposited मणिपुर हिंसा: परतों के भीतर कितनी परतें होती हैं? in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years ago
यह मणिपुर में 2023 में हुई हिंसा पर केंद्रित प्रमोद रंजन के रिपोर्ताजों का पहला भाग है।
प्रमोद रंजन इसमें पूर्वोत्तर भारत के इतिहास, संस्कृति और समाज में आ रहे परिवर्तनों को चिन्हित किया है तथा उसका संवेदनशील, मर्मस्पर्शी और विचारोत्तेजक चित्र प्रस्तुत किया है।
उन्होंने इस रिपोर्ताज में यह भी बताया है कि हिंसा के दौरान मैतेई महिलाओं के…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited “बचपन की वे छवियां मुझे जीवन के जादू की ओर खींचती हैं” in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 4 months ago
हिंदी कथाकार राजकुमार राकेश और प्रमोद रंजन की यह लंबी बातचीत शिमला में जनवरी, 2003 में हुई थी, जिसे वर्ष 2007 में पटना के मंडल विचार प्रकाशन ने एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया था। इस बातचीत में जादूई यथार्थवाद, मार्क्सवाद, दलित विमर्श तथा लेखक और सत्ता के बीच संबंध जैसे मुद्दे प्रमुखता से आए हैं।
पटना से जाबिर हुसेन के संपादन में प्रकाश…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited भला क्यों बची रहनी चाहिए किताबें? in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 4 months ago
पुस्तकों के अस्तित्व पर केंद्रित प्रमोद रंजन की यह टिप्प्णी पटना से प्रकाशित दैनिक प्रभात खबर में 12 दिसंबर, 2006 को प्रकाशित हुई थी। टिप्पणी से पता लगता है कि उस समय पटना में पुस्तक मेल लगा हुआ था और उसके उपलक्ष्य में प्रभात खबर विशेष पृष्ठ प्रकाशित कर रहा था, जिसमें यह टिप्प्णी प्रकाशित हुई थी।
इस टिप्पणी में कहा गया है किएक माध्यम…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited बहुजन साहित्य और आलोचना in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 6 months ago
यह फारवर्ड प्रेस की बहुजन साहित्य वार्षिकी: 2013 का संपादकीय है। इसमें बहुजन साहित्य और बहुजन आलोचना की अवधारणा पर संक्षेप में बात की गई है।
आलेख में कहा गया है कि बहुजन साहित्य का विकास वस्तुत: बहुजन आलोचना का विकास है। जैसे-जैसे हम बहुजन साहित्य को चिन्हित करते जाएंगे, अभिजन साहित्य स्वत: ही हाशिए का साहित्य बनता जाएगा क्योंकि हिंदी साहित…[Read more] -
Pramod Ranjan deposited नया ज्ञानोदय: ताअजीम के मेआंर परखने होंगे in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
वर्ष 2007 में हिंदी की प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘नया ज्ञानाेदय’ में प्रकाशित आलोचक विजय कुमार के एक लेख पर विवाद हुआ था। इस लेख में उन्होंने नए कवियों को आड़े हाथों लिया था।
विजय कुमार के इस लेख के विरोध में युवा कवियों ने एक पुस्तिका भी प्रकाशित थी। पटना की संस्था ‘लोक दायरा’ द्वारा प्रकाशित इस पुस्तिका का शीर्षक था- “युवा विरोध…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited हरियाणा का दलित आंदोलन और वेदपाल तंवर in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
21 अप्रैल 2010 की रात को हरियाणा के हिसार जिला के मिर्चपुर में दबंग जाट समुदाय ने दलितों की बस्ती में लगा दी थी। इस अग्निकांड में 70 साल के बुर्जुग और उनकी अपंग बेटी जिंदा जला दिया गया था। उसके बाद मिर्चपुर के दलितों को गांव छोड़कर भागना पड़ा था।
अध्येता प्रमोद रंजन ने जुलाई, 2012 में मिर्चपुर का दौरा किया। वे जिला मुख्यालय हिसार में मिर…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited Bahujan Criticism: From a Distinct Angle in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
Bahujan criticism underlines the presence of not only literature of the Dalit, Adivasi, and OBC sections but also Brahmanical and other dwija (upper caste) literature; and it also brings out aspects of their fundamental (social) make-up and their consequences. It interprets entrenched values and aesthetics in various kinds of literature. Thus,…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited बहुजन आलोचना: हिंदी समाज का साहित्य इस कोण से in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
बहुजन आलोचना न सिर्फ़ दलित, आदिवासी व पिछड़ा वर्ग के साहित्य बल्कि ब्राह्मणवादी साहित्य और अन्य द्विज साहित्य की मौजूदगी को भी चिन्हित करती है और उनकी बुनावट के मूल (सामाजिक) पहलुओं और उसके परिणामों को सामने लाती है। विविध प्रकार के साहित्य में विन्यस्त मूल्यों और सौंदर्यबोध की मीमांसा करती है। इस प्रकार यह कई प्रकार के आवरणों, छद॒म…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited सोशल मीडिया, बिहार की सत्ता और निलंबन in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
16 सितबर, 2011 को बिहार विधान परिषद् ने अपने दो कर्मचारियों- अरुण नारायण और मुसाफिर बैठा निलंबित कर दिया था। उन पर आरोप था कि उन्होंने परिषद् सभापति के निर्णय पर अपने एक फेसबुक पोस्ट में सवाल उठाया था। इससे पहले परिषद् ने अपने एक और कर्मचारी सैयद जावेद हुसेन को भी नौकरी से बर्खास्त कर दिया था।
यह टिप्प्णी इसी संदर्भ में है। -
Pramod Ranjan deposited टिप्पणियों के खिलाफ एक लंबी टिप्पणी in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
यह एक संस्मरणात्मक ललित निबंध है। इसमें बिहार के कथाकार व राजनेता जाबिर हुसेन, रामधारी सिंह दिवाकर और प्रमोद रंजन के बीच साहित्यिक रचना की स्वायत्तता को लेकर हुए विमर्श का प्रसंग है। लेखक का तर्क है किसी साहित्यिक रचना में उसकी पृष्ठभूमि के उल्लेख से उसकी स्वायत्तता भंग होती है और वह रचना के पूर्ण आस्वाद में बाधक होती है।
-
Pramod Ranjan deposited यवन की परी (जन विकल्प कविता पुस्तिका) in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
यह कविता पुस्तिका पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘जन विकल्प’ के प्रवेशांक (जनवरी, 2007) के साथ नि:शुल्क वितरित की गई थी।
जन विकल्प का प्रकाशन पटना से जनवरी, 2007 से दिसंबर, 2007 तक हुआ।पत्रिका के संपादक प्रेमकुमार और प्रमोद रंजन थे।उपरोक्त इस कविता-पुस्तिका की भूमिका रति सक्सेना लिखी है, जो निम्नांकित है : “पेरिया परसिया, सेता…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited “बचपन की वे छवियां मुझे जीवन के जादू की ओर खींचती हैं” in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
हिंदी कथाकार राजकुमार राकेश और प्रमोद रंजन की यह लंबी बातचीत शिमला में जनवरी, 2003 में हुई थी, जिसे पटना से जाबिर हुसेन के संपादन में प्रकाशित पत्रिका दोआबा ने जून, 2007 अंक में प्रकाशित किया था। उसी वर्ष इसे इसे पटना के मंडल विचार प्रकाशन ने एक पुस्तिका के रूप में भी प्रकाशित किया था। इस बातचीत में जादूई यथार्थवाद, मार्क्सवाद, दलित व…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited मीडिया: भाषा का सवाल (ग्राम परिवेश का पत्रकारिता विशेषांक-3) in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 7 months ago
इक्कसवीं सदी के पहले दशक के पूर्वाध में हिमाचल प्रदेश की साहित्यिक पत्रकारिता को प्रमोद रंजन ने एक नई दिशा दी थी। उन्होंने इस दौरान शिमला से प्रकाशित सांध्य दैनिक “भारतेंदु शिखर” और साप्ताहिक “ग्राम परिवेश” संपादन किया। उन्होंने इन समाचार पत्रों में साहित्यिक और विभिन्न वैचारिक मुद्दों पर केंद्रित विभिन्न परिशिष्टों और विशेषांकों का प्रकाशन कि…[Read more]
-
Pramod Ranjan deposited समय से संवाद आवश्यक in the group
Literary Journalism on Humanities Commons 2 years, 8 months ago
प्रेमकुमार मणि की यह संपादकीय टिप्पणी पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘जन विकल्प’ की साहित्य वार्षिकी, 2008 में प्रकाशित हुई थी। यह टिप्पणी ‘समय से संवाद’ पुस्तक में भी संकलित है।
जन विकल्प के संपादक प्रेमकुमार मणि और प्रमोद रंजन थे। - Load More