• पत्रकारिता में बहुत कुछ बदला है। कारोबार के आकार से लेकर टेक्नोलॉजी तक में बुनियादी बदलाव हो चुके हैं। लेकिन पत्रकारिता में एक चीज है जो समय के फ्रेम में लगभग फ्रीज सी हो गई है। यह ठहराव पत्रकारिता में जातिवाद के संदर्भ में है। पत्रकारिता में वंचित समूहों की हिस्सेदारी पहले बिल्कुल नहीं थी और अब भी हालात बदले नहीं हैं। प्रमोद रंजन का यह आलेख हिंदी पत्रकारिता के इसी ठहराव को रेखांकित करता है।