• सितंबर, 2009 में इतिहास, समाजशास्त्र, दर्शन, साहित्य व पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने वाले अनेक प्रमुख विद्वान व युवा अध्येता शिमला में ‘हिंदी की आधुनिकता’ पर पुनर्विचार करने के लिए जुटे थे। समाजशास्त्री अभय कुमार दुबे के संयोजन में यह सात दिवसीय आयोजन भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला ने किया था।

    आयोजन में इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श किया गया कि क्या एक भाषा के रूप में हिंदी आधुनिक मूल्यों का वहन करती है। वहां हिंदी पत्रकारिता में आधुनिक मूल्यों के समावेश की स्थिति पर भी चर्चा हुई ।

    आयोजन में पत्रकारों की उच्च सामाजिक पृष्ठभूमि का मीडिया पर पड़ने वाले प्रभाव पर प्रमोद रंजन, जो उस समय पटना से प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘जन विकल्प’ के संपादक थे, ने अपना बीज-वक्तव्य दिया था, जिस पर तीखी बहस हुई थी। इस विषय पर अभय कुमार दुबे के अलावा अपूर्वानंद, आदित्य निगम, रविकांत, सदन झा, राकेश कुमार सिंह विनीत कुमार और पंकज पुष्कर ने अपनी बातें रखीं।

    आयोजन के अन्य सत्रों में ओमप्रकाश वाल्मिकी, सुधीर चंद्र, सुधीश पचौरी, रोहिणी अग्रवाल, अनामिका, वैभव सिंह, सविता सिंह, नवीन चंद्र, राजीव रंजन गिरि, अजय नावारिया, पीटर रोनॅल्ड डिसूजा, चौधरी मुहम्मद नईम आदि के भाषण हुए थे। इस आयोजन में पढे गए पर्चों और उसपर हुई बातचीत ‘हिंदी-आधुनिकता : एक पुनर्विचार’ (संपादक, अभय कुमार दुबे, 2014) शीर्षक से तीन खंडों में प्रकाशित है।