• Pramod Ranjan deposited प्रभाष जोशी को याद करते हुए in the group Group logo of SociologySociology on Humanities Commons 4 months, 3 weeks ago

    प्रभाष जोशी की बौद्धिकता आजीवन अंतत: किसके पक्ष में रही? एक आदमी जो अन्यत्र किंचित तार्किक था, क्यों सामाजिक समानता का आग्रही नहीं बन सका? वर्ण-व्यवस्था का समर्थन कर उन्होंने गांधीवाद का विकास किया उसकी अवैज्ञानिकता को ही प्रमाणित किया? भारतीय प्रभुवर्ग की गुलामी उन्होंने क्यों स्वीकार की? सिर्फ इसलिए कि वह इन्हीं के बीच पैदा हुए थे?

    इस संस्मरण की पृष्ठभूमि को समझने के लिए निम्नांकित लेख भी देखे जाने चाहिए।

    1. दैनिक जनसत्ता के 30 अगस्त, 2009 अंक में प्रकाशित प्रमोद रंजन का लेख “विश्वास का धंधा’:https://doi.org/10.17613/07bd-cq52/
    2.दैनिक जनसत्ता में 6 सितंबर, 2009 को प्रकाशित प्रभाष जोशी का लेख “काले धंधे के रक्षक”:https://doi.org/10.5281/zenodo.7387770
    3.हाशिया नामक ब्लॉग पर सितंबर, 2009 में प्रकाशित प्रमोद रंजन का लेख: “महज एक बच्चे की ताली पर”:https://hcommons.org/deposits/item/hc:49883/
    4.प्रमोद रंजन की पुस्तिका: “मीडिया में हिस्सेदारी”: https://doi.org/10.17613/7bf4-3p41