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Pramod Ranjan deposited पेरियार के प्रतिनिधि विचार in the group
Sociology on Humanities Commons 4 months, 4 weeks ago
हिंदी में पेरियार का मूल लेखन और जीवनी उपलब्ध नहीं थी। सामाजिक आंदोलनों व अकादमियों में जो नई हिंदी भाषी पीढ़ी आई है, वह ‘नास्तिक पेरियार’ से तो खूब परिचित है और उनके प्रति उसमें जबर्दस्त आकर्षण भी है, लेकिन यह पीढ़ी उनके विचारों के बारे में कुछ सुनी-सुनाई, आधी-अधूरी बातें ही जानती है। वस्तुतः उसने पेरियार को पढ़ा नहीं है।
उनकी ‘द रामायण: अ ट्रू रीडिंग’ का हिंदी अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ शीर्षक से 1968 में ‘अर्जक संघ’ से जुड़े ललई सिंह ने प्रकाशित किया था, जिसे दिसंबर, 1969 में उतर प्रदेश सर्कार ने धार्मिक भावनाओं को आहट करने का आरोप लगाकर प्रतिबंधित कर दिया और इसकी सभी प्रतियाँ जब्त कर ली। 1995 में प्रदेश में पेरियार को अपने प्रमुख आदर्शों में गिनने वाले कांशीराम की ‘बहुजन समाज पार्टी’ सत्ता में आई, तब जाकर प्रतिबंध हटा। इसके बावजूद आज तक इस चर्चित किताब को प्रकाशित करने का साहस किसी प्रकाशक ने नहीं दिखाया तो इसके पीछे उत्तर भारत में प्रभाव शाली ब्राह्मणवादी ताकतों का भय, पेरियार के हिंदी विरोधी व कथित अलगाववाद के प्रति नासमझी व कई अन्य अंतर्निहित कारण रहे हैं।