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Pramod Ranjan deposited बहुजन साहित्य की प्रस्तावना in the group
Sociology on Humanities Commons 4 months, 3 weeks ago
यह पुस्तक मूल रूप से हिंदी में वर्ष 2016 में ‘बहुजन साहित्य की प्रस्तावना’ शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। उसका यह अंग्रेजी अनुवाद भी उसी वर्ष प्रकाशित हुआ था। यह किताब हिन्दी और भारतीय भाषाओं में बहुजन साहित्य की अवधारणा पर विमर्श प्रस्तुत करती है। एक ओर यह किताब हिंदी साहित्य में हो रहे बदलावों पर नजर रखती है दूसरी ओर मंडल कमीशन के लागू होने के बाद बदल रहे समाज व राजनीतिक परिदृश्यों के सापेक्ष साहित्य के क्षेत्र में शुरू हुई नई बहस के बुनियादी तत्वों को रेखांकित भी करती है। आज के भारतीय परिप्रेक्ष्य में बहुजन तबके हैं- अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजातियां, अनुसूचित जातियां, विमुक्त घूमंतू जातियां, पसमांदा अल्पसंख्यक व स्त्रियां । बहुजन साहित्य की अवधारणा इन सभी की पीड़ाओं में समानता देखती है तथा इनके शोषण के कारणों को कमोबेश समान पाती है। यह किताब साहित्य के शोधार्थियों के लिए जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही साहित्यिक नजरिए को समझने की आकंक्षा रखने वाले जागरूक लोगों के लिए भी और उनके लिए भी जो स्वयं को बहुजन का हिस्सा मानते हैं। फिर चाहे वे सामाजिक कार्यकर्ता हों या फिर राजनेता। बहुजन विमर्श से जुड़े सभी सवालों का यह किताब उत्तर देती है।