• जाति और पितृसत्ता ई. वी. रामासामी नायकर के चिंतन, लेखन और संघर्षों की केंद्रीय धुरी रही है। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि इन दोनों के विनाश के बिना किसी आधुनिक समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता है।
    जाति और पितृसत्ता के संबंध में पेरियार क्या सोचते थे और क्यों वे इसके विनाश को आधुनिक भारत के निर्माण के लिए अपरिहार्य एवं अनिवार्य मानते थे? इन प्रश्नों का हिंदी में एक मुकम्मल जवाब पहली बार यह किताब देती है।