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Pramod Ranjan deposited बहुजन विमर्श के कारण निशाने पर जेएनयू in the group
Scholarly Communication on Humanities Commons 10 months, 1 week ago
सामान्य तौर पर यह समझा है कि चूंकि दिल्ली स्थित जेएनयू के वामपंथ का गढ़ था, इसलिए दक्षिणपंथी ताकतें उससे नाराज थीं। अतएव, सत्ता में आने के बाद उन्होंने इस गढ़ को नष्ट कर देना चाहा। सन् 2016 में इस विश्वविद्यालय में घटी घटनाओं को इसी संदर्भ में देखा-समझा जाता रहा है।
लेकिन प्रमोद रंजन का यह बहुचर्चित लेख बताता है कि जेएनयू पर दक्षिणपंथ के हमले का मूल कारण पिछड़े तबकों और दलित-आदिवासी की वैचारिकी का उभार था। जेएनयू वामपंथ का गढ़ भले ही रहा है, लेकिन यह वामपंथ मुख्य रूप से अगड़ी जातियों का था। आरक्षण व अन्य कारणों से इक्कसवीं सदी के पहले दशक में जेएनयू का समाजिक चरित्र बदला और वहां पिछड़ी व दलित जातियों से आने वाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बढ़ गई। इस बदलाव ने जेएनयू की छात्र-राजनीति के मुद्दों को भी प्रभावित किया और वहां से एक ऐसी वैचारिकी प्रसारित होने लगी जो वर्चस्वशाली तबकों के विचारों के मूलाधार पर ही चुनौती देने में सक्षम थी।
यह लेख फारवर्ड प्रेस पत्रिका के मार्च, 2016 अंक में हिंदी व अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ था, जिसे बाद में अनेकानेक पत्रिकाओं ने पुर्नप्रकाशित किया तथा अनेक शोधों में भी इसे उद्धृत किया जाता रहा है।