• बहुजन साहित्य प्रगतिशील और दलित साहित्य का विस्तार है: प्रमोद रंजन

    Author(s):
    Pramod Ranjan (see profile)
    Date:
    2022
    Group(s):
    Literary Journalism, Literary theory
    Subject(s):
    Hindi literature, Criticism, Caste in literature, Literary movements, Hindi literature--Dalit authors, Dalits in literature, Progressivism in literature
    Item Type:
    Interview
    Tag(s):
    Bahujan sahitya, Chandika Prasad Gigyasu, Dalit literature, bahujan literature, Bahujan movement
    Permanent URL:
    https://doi.org/10.17613/z6md-7v46
    Abstract:
    -आज समाचार सेवा, पटना- *बहुजन साहित्य प्रगतिशील और दलित साहित्य का विस्तार है* *प्रमोद रंजन से बातचीत* प्रश्न: आपने बहुजन साहित्य की अवधारणा पर भी काम किया है। इस अवधारणा के बारे में कुछ बताएं। प्रमोद रंजन: बहुजन साहित्य का अर्थ है– अभिजन के विपरीत बहुजन का साहित्य और उनकी वैचारिकी। प्रगतिशील- मार्क्सवादी विचारधारा में जो ‘जन’ है, ‘बहुजन’ उसकी अगली कड़ी भी है। मार्क्सवाद के ‘जन’ का अर्थ भारत के सामाजिक-यथार्थ के संदर्भ में न सिर्फ अस्पष्ट और अनिश्‍चित बना रहता है, बल्कि वह हमारे सांस्कृतिक मंतव्यों को प्रकट नहीं करता। जब हम ‘जन’ में ‘बहु’ प्रत्यय जोड़ते हैं तो इससे बना शब्द हिंदुस्तानी परिप्रेक्ष्य में वैचारिक और दार्शनिक रूप से भी जीवंत बन उठता है। यह हमें भारत की श्रमणवादी धारा के दार्शनिकों, कौत्स, बुद्ध, मक्खली गोशाल, अजित केशकंबली आदि की वैज्ञानिक चेतना से जोड़ देता है और उनके दर्शन को समकालीन आवश्यकता के अनुरूप विकसित करने के लिए प्रेरित करता है। “बहुजन” में बहुलता का भाव है। नए भाषा संकेतों का सहारा लेकर कहें तो यह जन + (जन प्लस) भी है। जन+ के अर्थ में यह पिछले दो दशक से पश्चिम में चर्चित हो रही उत्तर-मानववाद जैसी धारणााओं को तार्किक दिशा देने में भी सक्षम है। कहना प्रगतिशील साहित्य में वंचित तबकों के दु:खों का चित्रण तो हुआ, लेकिन वह उन दाहक दु:खों के कारण के रूप में ब्राह्मणवाद को चिन्हित में सक्षम नहीं था। दलित साहित्य को दु:ख देने वाला भी दिखा, उसने उन दु:खों के कारणों को गहराई से रेखांकित किया। बहुजन साहित्य की अवधारणा से दु:ख भी दिखता है, दु:ख देने वाला भी दिखता है, और दुख से मुक्ति का उपाय भी दिखता है।
    Notes:
    यह बातचीत दैनिक आज के पटना संस्करण में 14 नवंबर, 2022 को प्रकाशित हुई थी।
    Metadata:
    Published as:
    Newspaper article    
    Status:
    Published
    Last Updated:
    1 year ago
    License:
    Attribution
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